गरीबों का हाल जैसा होता है, ठीक उसी प्रकार उ.प्र. रोडवेज बस भी अपनी दासता पर दुखड़ा सुनाते हुए नजर आती है। सीट के अंदर पीले गद्दे दिखाई देते हैं, जैसे कोई पीला सोना लगा हुआ हो। खिड़की के बाहर लोहे की जाली लगी हुई है,उसके सीसे ऐसे हिलते, जैसे कोई उसे अपनी बाहों में इस कदर जकड़ा हुआ हो और वह चाहता है कि कब मैं बाहर निकल जाऊं। इसकी खिड़कियाँ हिलते हुए खनखनाहट की आवाज लगाती हैं, जैसे कोई चूड़ी बेचने वाला सौदागर राह से गुजर रहा हो। जब किसी चंचल-सी सड़क से गुजरती तो इंसान मदमस्त होकर झूला झूलता है। ये अपनी धुन में बलखाती हुई ऐसे हिलते-मिलते नागिन की तरह फूँक मारती हुई आगे बढ़ती है। अगर कोई यात्री किसी बात को लेकर परेशान होता है तो ये उसको झकझोर करके रख देगी और वह अपना गम भी कुछ पल के लिए भूल जाता है। यदि कहीं जाम लग गया तो कोई दिक्कत नहीं, मुस्कुराते रहिए क्योंकि आप सफर कर रहे हैं। इसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम ही होंगी। कई वर्षों से मैं देख रहा हूं रोडवेज की वही खस्ताहाल ज़िंदगी न कोई रंगत न ही कोई रोशनी, न कोई रिपेयर ना कोई टाइम, अपने मन से ...
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